Tuesday 8 March 2011

आज का संदर्भ

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सच बोलो,
ईमानदार बनो,
परोपकार करो,
परिश्रमी बनो---
क्या,
बचपन की यह सीखें
थीं केवल
           
दिग्भ्रमित करने के लिए
या,
उनका उद्द्येश्य था
व्यक्ति,
परिवार तथा समाज
का उत्थान?
तमाम महापुरुषों
की जीवनियाँ
क्या इसीलिये
पढाई,
बताई गईं
कि उनके
बताये रास्ते पर
चल कर कहीं
हम सही
और सीधा रास्ता
न भूल जाएँ?
           

आधुनिक अभिमन्यु


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एक दिन,
अचानक
सुना,
इस वाहिनी में है
सिपाहियों की भारती होनो वाली
सोचा,
अब कुछ
आधुनिक अभिमन्यु,
चक्रव्यूह के सात द्वार भेदेंगे
और जो रह जायेंगे
बाहर, देंगे
अपने पिताश्री को अविरत गाली
की
वे अर्जुन सरीखे क्यों न हुए?

कायर

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वह भयभीत है
क्योंकि उसका
एक अतीत है
वह जबसे
पैदा हुआ है
मौत ने उसको
बार-बार छुआ है
कहतें हैं
वीर एक बार मारतें है
और कायर
रोज मारतें हैं
उसने खुद से
रोज पूछा है  की
वह कायर
आखिर क्यों हुआ है
रोज मरना

आग

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उसने
कई बार
ये कसम खाई है
की,
वह वहां से दूर रहेगा
जहां उसने
मौके-बेमौके
इज्ज़त गवाई है
फिर
यह कैसी
सामाजिक मजबूरी है
जो उसे पकड़ कर
फिर वहीं
खडा कर देती है
जहां उसने
अपनी दुनिया लुटाई है


भूख




उसे
कई वर्षों से
बड़ी जोर की
भूख लगी है
लजीज खाने की
सोच कर
मुंह में जो
आता है पानी
उससे उसे
खुशी होती है
उस दिन
उस मिली हुई
बर्फी को
उसने आगे से खाया

पाकसाफ

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कहतें हैं
वह पाकसाफ है;
और इसलिए
उनके सारे खून मुआफ है
पर की है मैंने
जो जिन्दादिली में
खूबसूरत गलतियां
उसके जिम्मेदार
क्या नहीं आप है?
ये मजबूरियां,
ये तमाम बंधनों को तोड़ने
की कसमसाहट
ये नथुनों में
पडी नकेल,
ये कानून,