Poems based on Vivek Dube's impressions of the Indian Police Service, IPS.
Tuesday 8 March 2011
आग
EBA9QYSX3ZU5
उसने
कई बार
ये कसम खाई है
की,
वह वहां से दूर रहेगा
जहां उसने
मौके-बेमौके
इज्ज़त गवाई है
फिर
यह कैसी
सामाजिक मजबूरी है
जो उसे पकड़ कर
फिर वहीं
खडा कर देती है
जहां उसने
अपनी दुनिया लुटाई है
पाकसाफ
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कहतें हैं
वह पाकसाफ है;
और इसलिए
उनके सारे खून मुआफ है
पर की है मैंने
जो जिन्दादिली में
खूबसूरत गलतियां
उसके जिम्मेदार
क्या नहीं आप है?
ये मजबूरियां,
ये तमाम बंधनों को तोड़ने
की कसमसाहट
ये नथुनों में
पडी नकेल,
ये कानून,
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