Tuesday 8 March 2011

आधुनिक अभिमन्यु


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एक दिन,
अचानक
सुना,
इस वाहिनी में है
सिपाहियों की भारती होनो वाली
सोचा,
अब कुछ
आधुनिक अभिमन्यु,
चक्रव्यूह के सात द्वार भेदेंगे
और जो रह जायेंगे
बाहर, देंगे
अपने पिताश्री को अविरत गाली
की
वे अर्जुन सरीखे क्यों न हुए?

 
तारीखें तै हुईं
अखबारों में
विज्ञापन हुए
तमाम
चाय और बिस्कुट आधारित
मीटिंगें हुईं
आखिर वह दिन आया
सूरज थोड़ा चमकाया
माईक पादेश चले
"उम्मीदवारों को 'वर्गवार'
अलग लाएनों में बिठाएं"
मंडल समर्थित
पिछड़ा वर्ग
आगे बढने लगा
शर्मा जी
लाइन इन्स्पेक्टर थे
चिल्लाये,
"रुको-रुको
क्या करते हो?
पिछड़े हो कर
अगड़ो से आगे बढ़ते हो?"
पहले द्वार पर
रागिस्त्रशन शुरू हुआ
मलिम हुआ,
ज्यादातर उम्मीदवार
चरित्रहीन हैं
क्योंकि वे
अपना चरित्र प्रमाढ़-पत्र
साथ नहीं लायें है
माइक पर अनाउन्समेंट हुआ
"चरित्रवान रह जाएँ
और चरित्रहीन
कृपया
फ़ौरन बाहर चलें जाएँ"
दूसरे द्वार पर थी
ऊंचाई-फुलाई परीक्षा
कई चरित्रवान ऊंचाई
और कई
सीने की फुलाई
में पीछे रह गए
लिहाजा
मैदान से जल्द बाहर हो गए
तीसरे द्वार पर
ऊंचे-तगड़े चरित्रवान
मील रेस के लिए
खड़े हुए
बताया गया
मील रेस छ: मिनट में
पूरी करनी है
नहीं कर सके
तो जैसी करनी वैसी भरनी है
उत्साहित से
सभी दौड़ पड़े
कुछ पीटी शू में दौड़ रहे थे
कुछ नंगे पैर
ट्रैक के कंकडों से जूझ रहे थे
राम-पलट वापस आया
सात मिनट में
पूछा
"बर्खुब्दार पीछे कैसे रह गए?"
बोला,
"हुजूर आपसे क्या छिपाना
आलसी हो गया है ज़माना
मेरे 'अर्जुन' और 'सुभद्रा' को
आ गयी
तीसरे द्वार में ही नींद
खुद तो सोये
और कर दी मेरी मिट्टी पलीद"
अगली बाधा
ऊंची कूद में
एक ने डाईव लगाया
गोया अखाड़ा स्वीमिंग पूल हो
डंडा पार हो गया
पर सर
अखाड़े से जा टकराया
गर्दन में मोच आ गयी
नजर सौ गज पर
'फिक्स' हो गयी
पूछा
"मियाँ मेडिकल अटेंशन तो नहीं चाहिए?"
बोला,
"नहीं
कोई बात नहीं
अच्छा ही हुआ है
अब गांडीवधारी अर्जुन की तरह
मुझे
सिर्फ लम्बी कूद का
जम्पिंग ब्लोक ही
नजर आ रहा है"
लम्बी कूद के महारथी
शोट-पुट की तरफ बढे
बताया,
गोला साधे पांच मीटर फेकना है
लेकिन खुद गोले में ही रहना है
नीम्बू लाल खडा हुआ
गोला ऊपर नीचे हुआ
जोर से ज्यों फेंका
गोला गोले में रहा
और खुद
साढ़े पांच मीटर पर जा रहा
चौथा द्वार था
लिखित परीक्षा का
प्रश्न था
"मेघदूत" किसने लिखा?"
उत्तर था,
"मौसमी चटर्जी ने लिखा"
मौसमी की याद कर
इक्जामिनर प्यार से मुस्काया
नंबर दिए
और पांचवे द्वार पर
इंटरव्यू शुरू हुआ
एक बिहारी, छपरा-निवासी उम्मीदवार
से पूछा
"भय्ये, छपरा से हरिद्वार तक
कौन-कौन से
स्टेशन पड़ते हैं?"
बिहारी हिचका
फिर उसने फरमाया
"छपरा, गोरखपुर, लखनऊ---
सर, ओकरे बाद रात हुई गईल
बहरां जोर के बरसात हुई गईल
भित्रां भीड़ में ठडा-ठडा
स्टेशन न देख गईल
नौकरी का मामल रहल
हमके ई कुल देखेक रहल"
छठें द्वार पर थी,
मूल प्रमाढ़ पत्रों की जांच
जो इसमें भी निकल गए
वे मेडिकल इक्जामिनेशन
के लिए गए
सातवें द्वार के
होने के बाद
डॉक्टर सरकार से पूछा
"डॉक्टर साहब
मेडिकल कैसा रहा?"
बोले
"सर, एक की हार्ट में मर्मर है,
लगता कुछ गड़बड़ है,
दूजा हकलाता है,
कानों से भी
सुन नहीं पाता hai
तीसरे के सर में
ट्यूमर है
ऐसी कुछ रयूमर है
कट गए
ज्यादातर इन टेस्टों में;
कुछ वीर अभिमन्यु
चक्रव्यूह के सातों द्वारों को
पार कर,
डिपार्टमेंट में ऐसे
शहीद हुए
की
रिटायरमेंट तक
बाहर न हो सके.


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