Wednesday 27 April 2011

वजह जो पूछी

वजह जो पूछी,
देर से आने की
हम पर ही बरस पड़े
तुम,
होते कौन हो पूछने वाले
कह आँखें तरेर गए
यहाँ आना
और चले जाना
सितारों का चक्कर है म्याँ
बड़े-बड़े इस दुनिया में
देर से आये
औ फौस चले गए

Saturday 2 April 2011

ग़ज़ल

पुकारते हैं हम उनको, वह मुंह मोड़ चले जाते हैं
गुज़ारी है तमाम ज़िन्दगी पीछे परछाइयों के दौड़ते हुए

किस्मतवार हैं वो, जो सो जाते हैं जहां भी जैसे भी
उम्र गुज़ारी है अपनी, अंधेरों को खोजते हुए

जीने औं मरने में ज़्यादा फर्क कुछ समझ न आया
सुबह औं शाम कटी है, जी-जी के मरते हुए, मर-मरके जीते हुए

सीने में दर्द चाहें तो मयस्सर नहीं होती
नज़रें राह में घूमी है, खुशियों को टोहते हुए

आवाज़ मेरी अब पत्थरों से लौट चली आती है
थक गया हूँ मैं रह-रह कर बोलते हुए

Tuesday 8 March 2011

आज का संदर्भ

Blog Directory
सच बोलो,
ईमानदार बनो,
परोपकार करो,
परिश्रमी बनो---
क्या,
बचपन की यह सीखें
थीं केवल
           
दिग्भ्रमित करने के लिए
या,
उनका उद्द्येश्य था
व्यक्ति,
परिवार तथा समाज
का उत्थान?
तमाम महापुरुषों
की जीवनियाँ
क्या इसीलिये
पढाई,
बताई गईं
कि उनके
बताये रास्ते पर
चल कर कहीं
हम सही
और सीधा रास्ता
न भूल जाएँ?
           

आधुनिक अभिमन्यु


Blogs lists and reviews

एक दिन,
अचानक
सुना,
इस वाहिनी में है
सिपाहियों की भारती होनो वाली
सोचा,
अब कुछ
आधुनिक अभिमन्यु,
चक्रव्यूह के सात द्वार भेदेंगे
और जो रह जायेंगे
बाहर, देंगे
अपने पिताश्री को अविरत गाली
की
वे अर्जुन सरीखे क्यों न हुए?

कायर

Books & Literature Blogs - Blog Rankings

वह भयभीत है
क्योंकि उसका
एक अतीत है
वह जबसे
पैदा हुआ है
मौत ने उसको
बार-बार छुआ है
कहतें हैं
वीर एक बार मारतें है
और कायर
रोज मारतें हैं
उसने खुद से
रोज पूछा है  की
वह कायर
आखिर क्यों हुआ है
रोज मरना

आग

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उसने
कई बार
ये कसम खाई है
की,
वह वहां से दूर रहेगा
जहां उसने
मौके-बेमौके
इज्ज़त गवाई है
फिर
यह कैसी
सामाजिक मजबूरी है
जो उसे पकड़ कर
फिर वहीं
खडा कर देती है
जहां उसने
अपनी दुनिया लुटाई है


भूख




उसे
कई वर्षों से
बड़ी जोर की
भूख लगी है
लजीज खाने की
सोच कर
मुंह में जो
आता है पानी
उससे उसे
खुशी होती है
उस दिन
उस मिली हुई
बर्फी को
उसने आगे से खाया